आज पढ़िए पेशे से साफ्टवेयर इंजीनियर रहे देश के ऐसे युवा की कहानी जिसने अमेरिका समेत कई देशों में नौकरी की, लेकिन अब वो अपनी गोशाला चलाता है, ये उदाहरण है उन लोगों के लिए जो कहते हैं पशुपालन में कमाई नहीं है,
गाजियाबाद। ऊंची-ऊंची इमारतों वाले गाजियाबाद शहर में कुछ ऐसे जमीन से जुड़े लोग भी हैं, जो बदलते भारत की नई इबारत लिख रहे हैं, ये वो लोग हैं जो अपने सपने को जीते हैं और कुछ ऐसा कर जाते हैं कि लोगों के लिए उदाहरण बन जाते हैं। यकीन नहीं होता तो गाजियाबाद के सिकंदरपुर जाकर देखिए।
हमारे घरों में गायें आमंत्रित हैं
गाजियाबाद के साहिबाबाद इलाके में आप हिंडन एयरफोर्स अड्डे से थोड़ा आगे बढ़ेंगे तो सिंकदरपुर गाँव है। बड़े-बड़े घरों के बीच एक घर पर आप की नजरें ठिठक सकती हैं.. गेट के बाहर लिखा है, “हमारे घरों में गायें आमंत्रित हैं।” ये असीम रावत (39 वर्ष) का घर है, जो अब हेथा डेयरी के नाम से जाना जाता है। यहां पर गिर और साहीवाल जैसी देसी नस्ल के करीब 400 गोवंश हैं, जिसमें 10 नंदी (सांड) और बाकी गाय और बछड़े-बछिया हैं।
सिर्फ गाय ही गाय नजर आईं
गाँव कनेक्शन की टीम जब हेथा डेयरी पहुंची तो दूध निकालकर दिल्ली, गाजियाबाद और गुड़गांव भेजा जा चुका है। डेयरी में काम करने वाले कर्मचारी गायों की देखभाल में लगे थे, तो मुख्य गेट के थोड़ा आगे ही आग पर गौमूत्र का आसवन कर अर्क निकाला जा रहा था। जहां आगे का रास्ता गौशाला जाता है, नजर उठाने पर सिर्फ गाय ही गाय नजर आती हैं।
बस सुकून खींच लाया
अमेरिका समेत कई देशों में 15 साल तक सॉफ्टवेयर की नौकरी और फिर गोशाला खोलने का ख्याल कैसे आया, ये सवाल पूछने पर अमीस मुस्कुराते हुए कहते हैं, “बस सुकून खींच लाया, हम नौकरी क्यों करते हैं, पैसे कमाने के लिए, फिर ऐसा काम क्यों न किया जाए, जिसमें पैसे और सुकून दोनों हों। मुझे इन गायों में यही मिला। अपने गाँव और घर लौटने की खुशी अलग से।”
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खुद सब पर रखते हैं नजर
बातचीत के दौरान उनकी नजर अक्सर मोबाइल पर चली जाती है, वो व्हाट्सएप पर मैसेज चेक करते हैं जो दूध लेने वाले ग्राहकों और डेयरी के बीच पारदर्शिता के लिए बनाया है। किसके यहां दूध पहुंचा या नहीं, वो खुद सब पर नजर रखते हैं। हेथा डेयरी की वेबसाइट भी है, लेकिन ये कोई हाईटेक नाम नहीं, बल्कि उनके पांचवीं पीढ़ी के दादा का नाम है, असीम डेयरी को उन्हें श्रृद्धांजलि मानते हैं।
A-1 दूध में डायबिटीज होने की आशंका
ये गोशाला खास क्यों हैं, पूछने पर वो अपने पीछे खड़ी एक गाय की पीठ पर हाथ फेरते हुए बताते हैं, “देसी गायों का दूध अमृत होता है, इन गायों से A-2 दूध मिलता है, जो सेहत का खजाना कहा जाता है। मेडिकल रिपोर्ट में साबित हुआ है A 1 दूध पीने वालों में टाइप 1 डायबिटीज होने की आशंका रहती है। A 2 मिल्क मानव शरीर के लिए सुपाच्य होता है।”
नीचे देखिए हेथा डेयरी और असीम रावत की पूरी कहानी, वीडियो में
लगातार करते रहते हैं अध्ययन
असीम गायों पर लगातार अध्ययन करते रहते हैं। उन्हें सबसे ज्यादा बल दूध को लेकर लिखी एक किताब ‘डेवल इन द मिल्क’ से मिला। इस किताब के अलावा उन्होंने कई मेडिकल जर्नल में पढ़ा था कि ए-1 मिल से कई बीमारियां हो रही हैं, जिसमें मधुमेह और भूलने तक की बीमारी शामिल थी।
भैंस का दूध तो इंसानों को पचता तक नहीं
असीम ने न सिर्फ डेयरी खोली है, बल्कि ए-2 दूध का खूब प्रचार-प्रसार भी करते हैं। वो बताते हैं, ” जब हम समझ गए हैं कि विदेशी गायों, भैंस आदि से जो दूध होता हो वो नुकसान करता है, फिर उसके कारोबार या फिर पीने की क्या जरुरत है। भैंस का दूध तो इंसानों के पेट में पचता तक नहीं, क्योंकि पेट के अंदर का तापमान ही इतना नहीं होता।”
ए-2 प्रोटीन को अमृत तुल्य माना गया है
गायों के दूध में बीटाकेजिन और बीटाकैरोटिन नाम के प्रोटीन पाए जाते हैं। बीटाकौरोटिन तो सभी गायों में मिलता है। बीटाकेजिन सिर्फ दो प्रकार का होता है, ए-1 और ए-2 प्रोटीन वाला। ए-1 प्रोटीन वाला दूध इंसानों के शरीर के लिए हानिकारक माना जाता है, जबकि ए-2 को अमृत तुल्य माना गया है। दुनिया में जितनी गायें हैं, उनकी आधी संख्या भारत में और लगभग हर देसी नस्ल में ये ए-2 प्रोटीन पाया जाता है। गिर, साहीवाल और कंकेर जैसी नस्लों में ये प्रचुर मात्रा में मिलता है।
इसके परखने के कई तरीके
असीम देसी और विदेशी नस्ल का अंतर बताते हुए कहते हैं, “आप जो दूध पी रहे हैं, वो कैसा है, इसके परखने के कई तरीके हैं, जैसे आप डेयरी पर पहुंच कर गाय-भैंस देखकर समझ सकते हैं। देसी नस्ल की गायों में पीठ उठी हुई मतलब कूबड़ होती है और नीचे पेट की खाल लटकी होती है। इसके अलावा आप दूध की जांच भी करवा सकते हैं।”
बिना नंदी के गोपालन नहीं कर सकते
असीम की हेथा डेयरी से कभी कोई गाय नहीं बिकती है। वो उनका प्रजनन करवाते हैं और अंदर ही रखते हैं। असीम के पास 100 नंदी हैं। वो बताते हैं, “आप बिना नंदी के गोपालन नहीं कर सकते हैं, और नंदी बोझ न बनें इसलिए जरूरी है, उनसे काम लिया जाए, हमारी तरह आप भी ट्रैक्टर न रखिए, ज्यादातर काम उनसे लीजिए और गोबर-गोमूत्र का उपयोग कीजिए।”
लेकिन वहां का दूध अच्छा ही नहीं लगता
दो गायों से शुरू हुई असीम की डेयरी को अब यूपी, हरियाणा समेत कई प्रदेश के लोग देखने और डेयरी का तरीका समझने आते हैं। हेथा डेयरी के भ्रमण के दौरान कानपुर में डिप्टी एसपी चंद्रभूषण मिश्रा से मुलाकात होती है। कुछ महीने पहले वो गाजियाबाद में तैनात थे और इन गायों का दूध पीते थे। चंद्रभूषण मिश्रा बताते हैं, “मैं कई महीने कानपुर में हूं, लेकिन वहां का दूध अच्छा ही नहीं लगता है। काफी खोजा, लेकिन वहां ये गाय नहीं मिली, अब सोचता हूं कि एक गाय पाल लूं। क्योंकि इन गायों को पालने में जो सुकून और दूध में जो ताकत है, वो कहीं नहीं।”
कुछ लोगों को दूध महंगा लगता है
असीम बताते हैं, “उन्होंने अपने डेयरी में 50 लोगों को सीधे रोजगार दिया है। मैं दूध अगर 99 रुपए लीटर बेचता हूं तो गोमूत्र उससे एक रुपया ज्यादा यानि पूरे 100 रुपए प्रति लीटर में। कुछ लोगों को दूध महंगा लगता है लेकिन मेरे पास डिमांड इतनी है कि पूरी नहीं कर पाता।” “महंगा लगने वाले लोगों को सलाह देता हूं, या दूध पीकर सेहत बना लो या फिर डाक्टर और दवा पर खर्च कर लो।,” वो मुस्काते हुए आगे जोड़ते हैं।
असीम ने पिछले दिनों बुलंदशहर में अपना जैविक फार्म भी खोला है जहां वो जैविक फसलों उगाते हैं और उन्हें एनसीआर में बेचते हैं।
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गायों के खानपान का रखा जाता है विशेष ख्याल
हेथा में पलने वाली गायों की साफ-सफाई और खानपान का विशेष ख्याल रखा जाता है। सर्दियों में उन्हें दलिया, बाजारा तो बाकी दिनों में गन्ने का चारा दिया जाता है। साथ ही जमीन की कमी और पौष्टिक चारे की सुविधा को देखते आयुर्वेट कंपनी की हाईड्रोपोनिक मशीन लगा रखी है, जहां से 200 किलो रोज हरा चारा मिलता है।
आपकी जेब कभी खाली नहीं होने देंगी
असीम बताते हैं, “बिना मिट्टी के होने वाला ये चारा बहुत पौष्टिक होता है। फिर यहां जमीन भी नहीं है ऐसे में इस विधि से काम आसान और रोज का रोज हरा चारा मिलता है।” असीम कहते हैं, “मैंने गायों के बारे में लगातार पढ़ता रहता हूं, इनसे कमाने का तरीका है, इन्हें समझिए साफ सुथरी जगह पर रखिए अच्छा चारा दीजिए, गायें आपकी जेब कभी खाली नहीं होने देंगी।”